जो जी रहे हैं और जो जीना है की बीच की परिधि पर खड़े खुद से सवाल जवाब करता एक अदना सा इंसान और उसकी खोज।
Thursday, January 5, 2023
डांट
मेरे अकेलेपन से डर बढ़ रहे थे। सो मैने जिनसे मुझे प्रेम था उन्हें बांधना शुरू कर दिया। उनसे दूर जाने पर खुद को भरोसा दिलाता रहा कि उनसे प्रेम है और उनकी याद से अकेलापन कट जायेगा पर ये डर था कि वो मुझे छोड़ देंगे क्योंकि मैंने उन्हें बांधा है। मेरा अकेलापन एक पीड़ा को मशीन बन गया। मुझे छोड़ना सीखना होगा और सहजता...
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देहरादून डायरी
21 फरवरी 2023, 6:45 am मैं बच रहा हूं क्या? लिखने की तेज इच्छा के बावजूद रोकता रहा और अंत में हारकर यहां आ पहुंचा! मुझे हार से प्रेम होता जा...

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कहना था इसलिए कह रहा हूं। Happy New Year!! दो दो जगह खुद को बांटकर चलता हूं। कौनसा सच कौनसा झूठ। चलो छोड़ो। ऐसे ही जीते हैं। कविता पढ़ोगे? *...
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कुछ बीत नहीं रहा सखी। समय अटका पड़ा है उस एक क्षण में जब सब कुछ घट जाना था लेकिन नहीं घटा। और उस अटके पड़े समय में अब सड़ने की बू आ रही है। ...
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शाम दिन भर जीने की थकान के साथ आती है। जीवन तब घुटने टेकता सा दिखता है। तरह तरह की टीस दिखती हैं। छायाएं बीते हुए की जब लगा था मैं खुश हूं। ...
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