Sunday, January 8, 2023

एक बात

एक बात लिखूं और मुक्त हो जाऊं... कुछ कह दूं और सारी त्रासदी से झाड़ लूं जीवन के कपड़े... सारा भीतर बाहर उगलकर हल्का हो जाऊं और कह दूं कि मैं जीत गया। हार को गले लगाकर देर तक रोऊं और जीत को चुपके से सुनाऊं लोरियां... धूप की बात करूं और छांव का सपना देखूं... कहीं से चिड़िया आए और सुनाए अपने मन की बात मैं देर तक हंसता रहूं जैसे हूं उसका सबसे घनिष्ट सखा... अपनी ही आंखों से खेलूं आंख मिचौली। सार कुछ में एक बिंदु हो जाऊं और देर तक करूं अपना विस्तार फिर भी रहूं उतना जितने में समा जाए समय... समय की यात्रा में देर तक खुद को बूढ़ा करूं और कहूं जीवन जिया था... मुमकिन है?

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